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धरा श्यामल भई

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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वसुंधरा शुष्क हुई, श्यामल ओढ़नी धरी,
रूखी, हरियाली खोई, मैली बे-रंग हुई।

हिम जाड़ा सांय-सांय, कीटक गजब ढाए,
हेमंत राह चेताए, शरदंत वंदना।

उल्लसित ऋतु प्रिय, उमंग सुहानी भए,
ताप निंदित आदित्य, प्राणी चैतन्य भरे।

कनक हरित धरा,अनावृत मणि धरा,
अपार गुंजन धरा, सौरभ दिलकुशा।

अदब हिम आतप, गज़ब हिम आतप,
अलसाई हिम सर्वत्र, विलक्षणता बढ़ी।

भरपूर पल्लवित, लबालब लवलीन,
यौवन हृत विगत, धरा खामोश हुई।

शनै-शनै सर्द हवा, दस्तक मस्तक नवा,
भयभीत संयमित जुवां, दारूण रुत भई।

उजड़ सर्वस्व धरा, पुनर्जन्म वसुंधरा,
सह वार-वार धरा, नवजीवन बढ़ी।

नूतन तवाना तुख्म, हर्षित संचित क्रम,
जगजननी धरित्री, प्रमोदिनी भू भई।

जीवन धात्री मेदिनी, अंकुरित अंतर्भूमि,
प्रतिरक्षा क्षण अवनि, अवधि ढाल बढ़ी॥

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।