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नई पीढ़ी के संस्कार

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मातु-पिता परिवार दें सदा,
शिक्षण बाल अबोध समझ लो
संस्कार जीवन विनयी हो,
मिटे सकल अवरोध, समझ लो।

मातु पिता गुरु चरण भजो नित,
जो जीवन आधार समझ लो
पा जीवन संस्कार ज्योति रभ,
बने मनुज संसार समझ लो।

सदाचार संस्कार धरोहर,
उसे शास्त्र का ज्ञान समझ लो
भज रे मन गुरुपद सरसिज,
ज्योति पुंज भगवान समझ लो।

हो जीवन मधुरिम सुख वैभव,
सदा सुपथ संस्कार समझ लो
सहज सरल निर्मल हृदयस्थल,
वसुधा ही परिवार समझ लो।

अनुशासन बिन छात्र यहाँ अब,
निर्भय बन उपहार समझ लो
बिन पाये संस्कार दुखी जन,
मनोयोग लाचार समझ लो।

बने संत बिन त्याग बहुल जग,
न संस्कार अवशेष समझ लो
संचय धन बल कर ठगी वृत्त,
फँसता बाबा बहु केश समझ लो।

मति विवेक चेतन संयम पथ,
जब पाए संस्कार समझ लो
शील त्याग तप सेवा भारत,
बने प्रगति आधार समझ लो।

रहे ध्येय नित राष्ट्र भक्ति मन,
वसुधा ही परिवार समझ लो
धीर-वीर सच समर सारथी,
मानवीय संस्कार समझ लो।

बहे प्रेम सरिता दुनिया में,
शीतल विमल समीर समझ लो
मिले सुधा संस्कार रसायन,
पीकर समरस तस्वीर समझ लो।

दीप जले सहयोग परस्पर,
मातृभूमि परिवार समझ लो
न्याय दीप जन सर्वसुलभ बन,
आलोकित संस्कार समझ लो।

भारत खिलता है विश्व चमन,
सभी धर्म वन फूल समझ लो
जाति धर्म भाषा विविधा बन,
संस्कार तरु मूल समझ लो।

नव पीढ़ी यौवन संस्कार चरित,
बना आज उन्माद समझ लो
सोलह संस्कार कहाँ आज,
फॅंसते नशा विवाद समझ लो।

सदाचार संस्कार पथिक बन,
यायावर नित लक्ष्य समझ लो
सबल सफल धीरज रखता पथ,
बच्चे हों संरक्ष्य समझ लो।

बिन नैतिक शिक्षा जग जीवन,
बने मनुज उद्दाम समझ लो
आवश्यक संस्कार समझ लो,
संजीव माँ आयाम समझ लो।

नमन करें उस ईश कृपालु,
जन्म दिया संसार समझ लो
मति विवेक संस्कार सृजित मति,
किया मनुज श्रंङ्गार समझ लो।

कवि ‘निकुंज’ गीतावलि सुन्दर,
बाँटे जग मुस्कान समझ लो।
संस्कारित जीवन मधुरस मन,
समरस मनभावन गान समझ लो॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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