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बेकाम रुपए-पैसे

डॉ.अनुराधा शर्मा
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से…

ज़ेहन के खाली घर में,तुम आ बसी हो ऐसे,
खुशबू-ए-रातरानी,मदहोश महकती हो जैसे।

परछाई पुतलियों में,नज़रों की नज़र-बंदी,
पलकों को खोल पल को,जाओगी बोलो कैसे ?

अब्रों के नरम अर्श में,बर्फ़ गर्म चमकी,
ज़ुल्फों की काली शब में,तारों की मांग तैसे।

मोजों का समंदर मैं,चेहरा तेरा पूनम-सा,
है ज्वार मोहब्बत का,हुस्नो-शबाब वैसे।

कुंदन-सा जिस्म तेरा,हीरो की कणी आँखें,
आगोश में जब तुम हो,बेकाम रुपए-पैसे॥

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