बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
*****************************************
परिस्थितियाँ नदियों सी बहती,
मौन विनय की दीक्षा देती है।
अंधड़-सी जीवन में आती,
सब आधार हिला देती है।
कभी प्रचंड लहर बन जाती,
तीव्र प्रवाह-सी आती है।
नियति का वह सबक सिखा देती,
कभी लहरें किनारे तक लाती है।
कभी तूफानों में नाव डगमगाती,
कभी दाहक प्रखर बन जाती है।
समय का चलायमान स्वर बन जाती,
कभी शीतल हवा बन जाती है।
राहें कभी काँटों से भर जाती,
कभी मंजिलें खुद पुकारती है।
मन में विश्वास जगा देती,
कुछ नया ठोकरें सिखा जाती है।
परिस्थितियाँ ही हमें है गढ़ती,
जीवन में गहराई भर देती है।
कभी बनकर सन्नाटा आती,
कभी आग बन जाती है।
कभी भीतर से तोड़ देती,
कभी तपाकर सोना बना देती है।
दु:ख भी कभी जगा देती,
कभी निर्माता बन जाती है।
रास्ते भी तो बदल देती,
पतवार मजबूत कर देती है।
हर किसी के जीवन में आती,
नया जन्म रच देती है।
जीवन का सत्य सिखा देती,
खुद पर विश्वास बना देती है।
कभी वह समाधान बन जाती,
कभी उठाकर भी गिरा देती है।
हर किसी की राह में आती,
सबको विपत्ति समझा जाती है।
कभी हवाएँ उल्टी चलती,
कभी दु:ख से हमें जगाती है॥
