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पहले साफ करो मन

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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मुझसे भी न जाने बड़े-बड़े,
हैं कितने सारे रावण खड़े।

अतिअत्याचारी व्यभिचारी,
बलात्कारी अतिभ्रष्टाचारी।

वो क्यूँ पूजे जाते हैं फिर,
क्यूँ मेरे काटे जाते हैं सिर।

उनको भी फिर मारो तीर,
वो भी जानें होती क्या पीर।

लाख थी मुझमें खूब बुराई,
पर नहीं कभी रोटी चुराई।

न ही किसी का पेट काटा,
न पशुओं का चारा बाँटा।

किसी का न छीना निवाला,
न हक पे कभी डाका डाला।

न माँ का ही दिल दुखाया,
न वृद्धाश्रम में ही पहुँचाया।

तुम बेटी को जिंदा जलाते,
नरभक्षी बन उसको खाते।

नौ दिन उसकी पूजा करते,
दसवें दिन से उसको डसते।

दैत्य हो तुम मुझसे भी बड़े,
पर हो कितनी शान से खड़े।

मैंने किया था एक अपहरण,
सब चिल्लाए रावण-रावण।

जाओ पहले साफ करो मन,
फिर करना मेरा तुम दहन।

यदि मन का रावण नहीं मरा,
हृदय में बस पाप भरा।

फिर किस काम का दशहरा,
अधर्म रहेगा सदा हरा-भरा॥

परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।