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पापा कितना याद आते…

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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‘पिता का प्रेम, पसीना और हम ’ स्पर्धा विशेष…..

पापा कितना याद आते,
आँसूओं के साथ जाते
याद आता उजला चेहरा,
जैसे हो सूरज का सेहरा
माथे पर सिलवट गहरी,
अनुभव की भरी दुपहरी
जब गोद में मुझे उठाते,
फूलों की डाली झुकाते
कंधे पर होकर खड़ी मैं,
देखो हुई कितनी बड़ी मैं।

दर-दर पापा आप भटके,
पसीना भी माथे से टपके
किस तरह शादी कराई,
अपनी सारी पूंजी लगाई
फूटी थी कितनी रुलाई,
कैसे मुझको दी बिदाई
सखियाँ छूटी आँगन छूटा,
भादो छूटा-सावन छूटा
मेरे छूट गए सारे खिलौने,
भाई-बहन छोटे सलोने।

आज उठती हूक-सी है,
स्मृतियों की धूप-सी है
लगता जैसे तुम आओगे,
बाँहें अपनी फैलाओगे
भूलकर मैं ये सारी दुनिया,
तुमसे लिपटेगी ये बिटिया
हाल माँ के बतलाओगे,
अपने आँसू छलकाओगे
मैं आँसू तुम्हारे पोंछ दूँगी,
अपने आँसू रोक लूँगी।

मैं भी तो हूँ कितनी पागल,
क्यूँ पकडूँ उड़ता बादल
न आएंगे वो पल सुनहरे,
यादों पर हैं समय के पहरे
मना लिया मन को अपने,
देखेंगी नहीं आँखें सपने
अब बस मेरा है यही घर,
एक पिता का ये भी मन्दिर।
उन्हीं को मैं अब पूजती हूँ,
अक़्स तुम्हारा ही देखती हूँ॥

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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