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मैं बंद किवाड़ों-सी

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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तू दस्तक़,मैं बंद किवाड़ों-सी,
तू बादल,मैं एक चमकती बिजली-सी।
तू रिमझिम सावन,मैं ठंडी फुहार-सी,
तू आवाज,मैं रुंधे हुए स्वर-सी।

तू धड़कन,मैं तेरे अंदर की रूह-सी,
तू पूर्ण,मैं सिर्फ कुछ एक अंश-सी।
तू एक सपना,मैं हकीकत-सी,
तू हिमालय,मैं बर्फ-सी पिघलती-सी।

तू साहिर का प्रेम,मैं इमरोज का एकतरफा इश्क-सी
तू शोर,मैं खामोशी-सी।
तू इंद्रधनुष,मैं श्यामल वर्ण-सी,
तू अहसास,मैं धड़कनों-सी।

तू नींद,मैं सपनों-सी,
तू नील गगन,मैं वसुंधरा-सी।
तू दस्तक,मैं शान्त-सी,
तू सघन मार्ग,मैं पगडंडी-सी।

तू रातों का साया,मैं हमसाए-सी,
तू रोशनी,मैं अंधेरे-सी।
तू तन्हाई,मैं मिलन-सी,
तू क्षितिज के पार,मैं धरती सेअकेलेपन-सी।

तू धूप,मैं सहसा ही मिली छाँव-सी,
तू नाद,मैं अनहद नाद-सी।
तू मौन,मैं न जाने कितनी ही अनकही बातों-सी…,
तू मुझमें,मैं तुझमें बसती-सी।

तू ता-उम्र दूर-सा,मैं हर पल तेरे करीब-सी,
तू दर्पण,मैं झलक सी।
तू गहरा सागर,मैं चंचल नदी-सी,
तू चाँद,मैं चाँदनी सी।

तू ठहरा पानी,मैं तरंग-सी,
तू पतंग,मैं डोर-सी।
तू पुष्प,मैं सुगंध सी,
तू कृष्ण,में राधा-सी।

तू चन्द्रमा नील गगन का,मैं धरा की धूल-सी,
तू स्वर्ण,मैं चमक-सी।
तू आनंद,मैं खुशी-सी,
तू पुस्तक,मैं कलम-सी।

तू इश्क़,मैं प्रेमिका-सी,
तू आँधी,मैं हिलोर-सी।
तू सुबह,मैं सांझ-सी,
तू दस्तक,मैं बंद…॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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