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प्रकृति रंग बिखराती

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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मेघ, सावन और ईश्वर…

दुल्हन-सी सजी है धरती,
प्रकृति रंग बिखराती है
जल से भरी लबालब नदियाँ,
मधुर संगीत सुनाती है।

सावन में बारिश की बूंदें,
सबके मन को भाती है
सूरज की किरणों के संग,
तन-मन को सहलाती है।

धरती पर जब गिरती है बूँदें,
मिट्टी की खुशबू आ आती है
हृदय स्पंदन करती हवाएं,
तन-मन को छू जाती है।

हरी-भरी फसलें खेतों में,
लहर-लहर लहरातीं है
बयार चली है मर्मस्पर्शी,
हृदय में प्रेम जगाती हैं।

सूरज की स्वर्णिम किरणें,
लालिमा बिखराती है
कल-कल झरनों के संग,
सबके मन को भाती है।

प्रकृति जीवन में सभी को,
मेहनत करना सिखाती है।
सावन में रिश्तों की खुशबू,
अंतरंग प्रेम बरसाती है॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।