प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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प्रभु नाम का सहारा लीजो पग-पग में।
मोह न उपजे जग-मग में॥
मोह न उपजे जग-मग में…
मोह का बंधन ऐसा जकड़े,
पराधीन प्राणी तू अकड़े।
मोह बावरा मारे ठोकर,
छाती पीटे तू रो-रो कर।
प्रभु आस मिलन भर रग-रग में,
प्रभु नाम का सहारा…॥
एक ही चिंतन रख तू मन में,
जनमों-जनम से मोह न छूटे।
जब जिस कारण जुड़े प्रभु से,
प्रभु छींके में लटक घट फूटे।
बलवती माया लीले डग-डग में,
प्रभु नाम का सहारा…॥
माया-मोह ऐसा आकर्षण,
मूँछ में ताव दे निकल न पाओ।
बड़े-बड़े ज्ञानी फंस इसमें,
कहते सबसे खुद को बचाओ।
माया ठगा-ठगी खेलें लगभग में,
प्रभु नाम का सहारा…॥
प्रभु नाम का सहारा लीजो पग-पग में।
मोह न उपजे जग-मग में।
मोह न उपजे जग-मग में…॥