सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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फागुन की बहार आई,
करके श्रृंगार आई
टेसुओं के रंग की,
छटा बिखेर लाई है।
पवन झकोरे चलें,
डालियाँ भी झूम उठीं
मधुबन में फिर से,
बहार कोई आई है।
लाल, गुलाबी, पीत,
परागी, सिंदूरी रंग
रंग और गुलाल की,
फुहार मन भायी है।
सरसों के खेत लहराए,
देखो ऐसे आज
पीला परिधान ओढ़,
धरा मुस्कुराई है।
उड़े हैं गुलाल चारों,
इन्द्रधनुषी
धरती से अम्बर के,
मिलन की घड़ी आई है।
प्रेम और स्नेह की फुहार,
लिए आई होली
न जाने कितनों के,
कष्ट हरने आई है।
सजी है वसुंधरा,
आज कई रूपों में
और आसमान की रंगोली,
अति भायी है।
मिटे सारे भेदभाव,
रूठों को मना लो आज
होली आज देखो,
ये संदेश ले के आई है।
ख़ुशियों का रंग भरे,
ढोल मंजीरे बजे।
फागुन के मंगल-गान,
सबके मन भायी है॥