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बहला जाते हो

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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बोझिल दिन बहला जाते हो,
नूर अजब नहला जाते हो।

हम जब भी तन्हा होते हैं,
तुम चुपके से आ जाते हो
नम बरसातों भून करारा,
यादों को पकड़ा जाते हो।

कानों में सरगोशी करते,
बालों को सहला जाते हो
ना खोलो जुम्बिश हाथों की,
ख्यालों में झुला जाते हो।

जब जाने की बातें करते,
नाज़ुक दिल दहला जाते हो
बोलो जब यादों में आते हो,
काजल क्यों धुला जाते हो।

याद हवा की यारी कैसी,
आँखों धुंध उड़ा जाते हो।
ख्वाब सभी सच्चे लगते हैं,
तुम यूँ सच झुठला जाते जो॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।