डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
**************************************
दानिश का जिक्र होगा तो मैं भी दबीर हूँ।
आदम की ही मैं आल हूँ उसका खमीर हूँ।
मैं खुद अनापरस्त भी हूँ बा उसूल भी,
इज़्ज़त के मामले में बड़ी ही अमीर हूँ।
सौ बंधनों में बंध के भी टूटी नहीं कभी,
हक़ ही बयान करती हूँ, गो की सगीर हूँ।
दुश्मन मेरे किरदार को कैसे मिटाएगा,
सौदा ज़मीर का न किया बा ज़मीर हूँ।
लड़ना बड़े तूफ़ान से अपना मिज़ाज है,
जालिम को भेदता हुआ नावक का तीर हूँ।
ज़ुल्मत के अंधेरों से बड़ा बैर है मुझे,
हर हाल में जलता हूँ चिराग-ए- मुनीर हूँ।
महफ़िल के जो चिराग थे पैसों से बिक गए,
सच की ही मैं लिसान हूँ, हक़ की मुशीर हूँ।
साए में किसी शख्स के बैठी नहीं कभी,
आज़ाद हूँ, ‘शाहीन’ हूँ, दिल की कबीर हूँ॥