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बेबसी-कसक

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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रह-रह कर उठती-गिरती,
फिर अंग-अंग चुभ जाती है
बेबसी के द्वार पर ठहरी,
कसक जब जाग जाती है।

मसोस कर दिल को मेरे,
पलकों से बह जाती है
दर्द की बेदर्द बिजलियाँ
मन रीता कर जाती है।

कोरे पन्ने-सी आकर मेरी,
हथेली पर छप जाती है
दिल की सुंदर दुनिया से,
मुझे जुदा कर देती है।

आह भी न निकल सकी,
दिल में गहरी दफन हुई
घुटती हुई साँसें मेरी,
हर साँस पर मरती रही।

अस्त हुई लगती जैसे,
पर घुन-सी सालती रही।
जब-तब दिल को दहलाने,
कसक दिल में उठती रही॥