सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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रविवार का था दिवस, छुट्टी का माहौल,
बैठे थे कुछ दोस्त इकट्ठा, देख रहे थे मैच
बीच में सबको तलब लगी जब चाय बनाए कौन ?
उठा दोस्त एक शान से, तब ही छूट गया एक कैच।
बीच में जब फिर ब्रेक हो गया, वह चाय बनाते बोला
चाय बनाने में निपुण नहीं रोटी सकूँ बनाय,
रोटी की जब बात उठी
करें सब अपनी-अपनी बात।
बहुत है मुश्किल इसे बेलना करूँ मैं कौन उपाय,
किसी की छोटी, किसी की मोटी किसी की अजब आकार
देखकर लगता ऐसा जैसे बना हो हिन्दुस्तान।
एक दोस्त तब उठा उन्हीं में बोला अपनी बात,
चुप बैठो सब सुनो ध्यान से बात ये सच्ची मान
रोटी सबकी अलग-अलग है रोटी बहुत महान,
सबसे प्यारी रोटी माँ की, भरा बहुत-सा प्यार
पेट भरे पर भी माँ कहती एक और मेरे लाल।
कहता हूँ मैं बात यह साँची है अनुभव आधार,
अगली रोटी पत्नी की है आदर और सम्मान
रोटी अच्छी होती उसकी पेट भरे तक मान,
तीसरी रोटी बहू की होती भाव सिर्फ़ कर्तव्य
मन में कुछ संकोच भी होता पेट भरे तक जान,
चौथी रोटी नौकर की बस किसी तरह है खाना
नहीं कोई सम्मान है उसमें सच है यह अफ़साना।
बड़ी अनमोल है माँ की रोटी बीबी की मनुहार,
रोटी बहू की याद दिलाती आया नया ज़माना,
है रोटी की कथा निराली सुनो सभी धर ध्यान
रोटी की है यही कहानी जाने सकल जहान।
सदा ध्यान में रखना रोटी, होती है अनमोल।
जब तक दे सकते हो,
जी-भर करो अन्न का दान॥