डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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सपने नित नए जगने लगे हैं।
मन के भाव गुनगुनाने लगे है।
आने वाला था वो नहीं आया,
कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।
ये उदासी के अंधेरे और तन्हाई,
अब मेरे ख्वाब मुरझाने लगे हैं।
जिसको देखो वही उदास है अब,
हम पे जो बीती उसे भुलाने लगे हैं।
उसके आने की है खुशी ऐसी,
हम भी उम्दा ग़ज़ल गाने लगे हैं।
हमारी गली में वो आए थे इक दिन,
तभी से यहाँ आने-जाने लगे हैं।
अब तो हर सिम्त में है तन्हाई,
हम भी ख़ुद से नजरें चुराने लगे हैं।
आँखें पथरा गई ‘शाहीन’ की अब,
आस के दीप बुझ जाने लगे हैं॥