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महफ़िल तेरे नाम की

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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मुझको मर के जवाब देना है।
हर गुनाह का हिसाब देना है।

बारहा मुझको खार देते हैं,
उनको ताजा गुलाब देना है।

बुग्जो नफरत को आम करते हैं,
ऐसे जज्बों को दाब देना है।

दिल की धरती खिज़ा रशीदा है,
दिल की धरती को आब देना है।

मेरी खुशियों का खून कर डाला,
और भी कुछ जनाब देना है।

उसने फिर दिल्लगी की ठानी है,
जाने किसको अजाब देना है।

वो जो मेहरूम है मोहब्बत से,
उसको दिल की किताब देना है।

यह तो ‘शाहीन’ खुदा की मर्जी है,
किसको अज़्रो सवाब देना है॥