राधा गोयल
नई दिल्ली
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प्यासी धरती पर जल बरसा, मह मह महकी वसुंधरा,
चहुँ ओर यौवन छाया, हर घाट-घाट है हरा-भरा
पात-पात पर कलियाँ के मुख खुलने को अब विकल हुए,
कलियों का चुम्बन करने को भ्रमरों के दल निकल पड़े
धानी चादर ओढ़ धरा ने अपना आँचल लहराया,
मह-मह महकी वसुंधरा को देख मन बहुत हर्षाया।
आल्हादित हो गया गगन, धरती ने ली अंगड़ाई है,
प्रेमातुर प्रिय ने प्रेमिल की, आँख से आँख लड़ाई है
मदमाते मौसम में कामदेव ने बाण चलाया है,
सबका मन हो गया प्रफुल्लित, रोम- रोम हर्षाया है।
रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, छाई है चहुँ ओर बहार,
अंग-अंग निखरा धरती का, यौवन का चढ़ गया खुमार॥
