डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन (हिमाचल प्रदेश)
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मित्रता-ज़िंदगी…
ज़िंदगी में मित्र,
जरूरी है
इसके बिना,
ज़िंदगी अधूरी है।
आड़े वक्त में,
मित्र ही काम आते हैं
बाकी लोग,
नज़र नहीं आते हैं।
सगे-संबंधी से,
ज्यादा मित्र काम आते हैं
मुसीबत के समय,
हमारा हौसला बढ़ाते हैं।
दोस्त हमारा,
हमराज़ होता है
हमारा हर राज़,
उसके पास होता है।
सच्चा दोस्त बड़ी,
मुश्किल से मिलता है
और मित्रता का रिश्ता,
आजीवन चलता है।
दोस्ती का रिश्ता,
विश्वास पर खड़ा होता है
भरोसे की नींव पर,
खड़ा होता है।
चोट हमको लगती है,
दर्द उसको होता है
वो एक सच्चा मित्र नहीं,
बल्कि एक फरिश्ता होता है।
संभल के बनाना,
दोस्त इस दुनिया में
क्योंकि कुछ भेड़िए घुसे हैं,
इंसान की खालों में।
अगर की है मित्रता,
तो आजीवन निभाना।
कितनी भी मुसीबतें आए,
बहाने मत बनाना।
दो शरीर एक,
जान होते हैं।
एक-दूसरे पर,
कुर्बान होते हैं॥
परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी (हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस., एम.ए., एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका, व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह प्रकाशित है। आपको राजस्थान से ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष (सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”