डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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पावन कार्तिक पूर्णिमा, जन्मदिन कार्तिकेय।
शिव नंदन गिरिजा तनय, तारकसुर वध धेय॥
कार्तिकेय के नाम पर, रचना कार्तिक मास।
विष्णु नारायण रूप में, करे शयन जलवास॥
देव उठनी मास यह, एकादशी महान।
तुलसी वैवाहिक दिवस, मिले मोक्ष वरदान॥
पावन गंगाजल सरित, जो करे भक्ति स्नान।
मिटे रोग मन शोक सब, मिले सुखद सम्मान॥
शालिग्राम पूजन प्रथा, कार्तिक मासारम्भ।
सत्यनारायण व्रत कथा, सुन मिटे पाप व दम्भ॥
अति महत्त्व सरिता जगत,पावन कार्तिक मास।
दीपदान हो पुण्यदा, सरिता स्नान सुहास॥
कार्तिकशुक्ला पूर्णिमा, तुलसी पूजन लोक।
त्रिपुरारी हर त्रिपुर को, हरे स्वर्ग का शोक॥
मुदित हुए सब देवता, आए काशी धाम।
जला दीप शिव अर्चना, देव दिवाली नाम॥
आज देव दीपावली, पूर्णिम कार्तिक मास।
अर्घ्य उदित दे सूर्य को, हो सुख धन यश वास॥
मंगल कार्तिक पूर्णिमा, नव जीवन शुरुआत।
नवल गेह व्यवसाय नव, दीपदान शुभ रात॥
अर्घ्यदान रवि अरुणिमा, अर्पण जल निशिकांत।
कार्तिक त्रिपुरी पूर्णिमा, मिले विभव सुख शान्त॥
अवगाहन गंगा सलिल, चन्द्रमौलि हरि जाप।
मिटे सकल आतंक खल, मुक्त सकल संताप॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥