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मुझे तुम बतलाना प्रिये

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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क्यों छोड़ गई हमें तू इतनी जल्दी,
मुझे तुम बतलाना प्रिये।

जब जाना ही था तो तू आई क्यों ?
तुम मुझसे इतना नेह लगाई क्यों ?
भरा-पूरा परिवार क्या तुझे पसंद नहीं था,
या दिल में तेरे कोई गम पल रहा था।
मुझे तुम बतलाना प्रिये…॥

इतनी जल्दी जाने की तो बात नहीं थी,
सदा साथ-साथ चलने की बात जो थी
तड़प रहा हूँ अब तो मैं तेरी आह में,
क्यों चली गई छोड़ तुम बीच राह में।
मुझे तुम बतलाना प्रिये…॥

मैं भी तो करता था जी-भर के प्यार तुझे,
अब तो मेरे सपने सारे हो गए बुझे-बुझे
मुझसे प्यारे क्या तुझे वो भगवान लगे,
ऐसे तो नहीं कभी किसी के भाग्य जगे।
मुझे तुम बतलाना प्रिये…॥

मैं रोकता नहीं यदि तुम कह के जाती,
पूरे तो सारे अरमान कर के तुम जाती
साँसों में बसा रखा था तुझे पता था,
तुझे रहना पसंद नहीं, ये तूने कब कहा था।
मुझे तुम बतलाना प्रिये…॥

क्या कुछ कमी हो गई थी मेरे प्यार में,
एक बार कह देती तुम इसी संसार में
जाना तो तेरा तय था ये मुझे पता था,
पर इतनी जल्दी ये मुझे नहीं पता था।
ये तो तुम बतलाना प्रिये…॥

क्या मेरी गलतियों की सजा दी तुमने मुझे,
या तेरा कोई स्वार्थ पूर्ण नहीं हुआ मुझसे।
प्यार से लड़ के-झगड़ कह देती मुझसे,
तेरी खुशी खातिर मांग लेता क्षमा तुझसे।
ये भी तो तुम बतलाना प्रिये…॥

सफर तो अभी बहुत लंबा जाना है दूर,
कैसे अकेले चलूंगा बतलाना मेरे हजूर
अदृश्य रहकर भी तुम देना साथ मेरा,
अब इस दुनिया में रखा ही है क्या मेरा।
ये भी तो तुम बतलाना प्रिये…॥

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