कुल पृष्ठ दर्शन : 208

You are currently viewing मुझे मत यूँ सताओ तुम

मुझे मत यूँ सताओ तुम

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
******************************************

रचनाशिल्प:क़ाफ़िया-आओ,रदीफ-तुम, बहर १२२२,१२२२,१२२२,१२२२


मिरे जज़्बात को समझो मुझे मत यूँ सताओ तुम,
रहो मुझसे ख़फ़ा लेकिन न मुझसे दूर जाओ तुम।

गुज़ारी साथ हमने ज़िन्दगी वादे किये कितने,
तुम्हारा फर्ज़ है अपने किये वादे निभाओ तुम।

नहीं कोई गिला-शिकवा ज़ुबां पर अब तलक आया,
हुई हो ग़र ख़ता कोई उसे अब भूल जाओ तुम।

ज़रा देखो हसीं मौसम बहारों का निगाहों से,
न तड़पाओ जरा-सा मुस्कुरा नज़रें मिलाओ तुम।

बिछायी राह में फूलों की चादर है बहारों ने,
नहीं यूँ हुस्न वाले नाज़ अब मुझको दिखाओ तुम।

बहुत-सी ख़्वाहिशें दिल में लिये बैठा हुआ हूँ मैं,
तमन्नाओं की भरने झोलियाँ अब लौट आओ तुम॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

Leave a Reply