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मेरी तलाश में है

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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बस एक वक्त का खंजर मेरी तलाश में है।
भुला दे राह वो रहबर मेरी तलाश में है।

दस्तूर-ए-खुदा है कि ज़मीनें रहे आबाद,
सूखी हुई ज़मीन व बंजर मेरी तलाश में है।

रंगीन ख्वाब मेरे थे दुश्मन ने किए चूर,
उन्हीं के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है।

सच्चाई हुई कैद अंधेरों में शक नहीं,
सदाकत राह भटककर मेरी तलाश में है।

लैला हो कि मजनूँ हो कि रांझा हो, हीर हो,
खुशनुमा हुस्न का पैकर मेरी तलाश में है।

‘शाहीन’ क्या भुलाऊँ, कहाँ तक करूँ मैं याद,
किसी की याद का मंजर मेरी तलाश में है॥