कुल पृष्ठ दर्शन : 213

You are currently viewing मैं ही गीता,मैं ही गंगा

मैं ही गीता,मैं ही गंगा

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
*******************************************

सुनो सुनाती हूँ नारी का पवित्र,जीवन और कहानी,
देव लोक से चली आ रही है,यह बात है बहुत पुरानी।

नारी हूँ,अन्तर्मन में त्याग तपस्या संस्कारों से भरी हूँ,
नारी हूँ,असत्य मैं नहीं बोलती,कसौटी में खरी हूँ।

मैं नारी हूँ,मैं नारीयों को जन्म देने वाली नारी ही हूँ,
वीर सपूत बलिदानी को,जन्म देने वाली नारी ही हूँ।

मैं ही गीता,मैं ही गंगा,मैं ही देव लोक की रानी हूँ,
मैं हूँ भारतीय नारी,मनोबल से,मैं भी बलिदानी हूँ।

मैं नारी ही धर्म की रक्षा,अपने संस्कारों से करती हूँ,
कुल-वंश बढ़ाने में,मैं नारी प्रसव पीड़ा भी सहती हूँ।

मैं नारी,अपने प्यारे पति को,ईश्वर स्वरूप समझती हूँ,
सभी पर्व-तीज त्योहार में,मैं उनके चरण धो के पीती हूँ।

फिर क्यों घर-घर में मुझ नारी पर अत्याचार करते हो,
क्यों दहेज के लोभी बनकर के,आग में जला देते हो।

यह भी कड़वा सच है,नारी,नारी की दुश्मन होती है,
दुनिया में आने से पहले,वह गर्भ में मुझे मार देती है।

मैं नारी,अब लक्ष्मी बाई झांसी की रानी बन चुकी हूँ,
आगे ना बढ़ना दिल में पाप लेकर,सचेत कर चुकी हूँ।

भूल नहीं करना दुनिया वालों,लाचार नहीं है नारी,
समय पड़े तो मैं कानून पर भी,पड़ जाऊॅ॑गी भारी॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

Leave a Reply