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रूप का प्याला

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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छलकते रूप का प्याला,बना ये चाँद-सा मुखड़ा,
लगे जैसे उतर आया,हसीं इक ख़्वाब का टुकड़ा।
गगन के चाँद-तारे भी,तुम्हारे रूप पर मोहित,
गुलाबी से अधर तेरे,सुनहरे रूप पर शोभित॥

निगाहों में सजे सपने,कहीं कोई झलक तो है,
नहीं देखे उन्हें कोई,झुकी-सी ये पलक तो है।
घनी जुल्फें घटा बनकर,चमकते चाँद पर छाई,
बढ़ी हैं धड़कनें दिल की,कि गूँजे आज शहनाई॥

बनूँ उनकी सुहागन मैं,रहूँ बस पास में तेरे,
तुम्हे अर्पण करूँ जीवन,तुम्हीं सरताज हो मेरे।
बनूँ हर जन्म में तेरी,यही बस इक तमन्ना है,
तुम्हारे साथ ही जीना,तुम्हारे साथ मरना है॥

परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।