डॉ. रचना पांडे,
भिलाई(छत्तीसगढ़)
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उड़ना चाहती थी
आसमान में उड़ते पंछी की तरह,
आजाद आबाद बेखौफ बेफिक्र
खयाल आया घोंसले में इंतजार करते,
छोटे-छोटे उन नन्हें परिंदों का
जो राह मे बैठे थे दाना लेकर आएगी माँ।
मैं लौट आई एक बार फिर
वादा करके आसमां से,
आऊंगी जरुर भरोसा रखना।
सीख जाएंगे जब वो नन्हें परिंदे,
अकेले खुद आसमां की सैर करना॥