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लौट चलें गाँव की ओर

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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लौट चलें गाँव की ओर,
शहरों में ऐसी बात कहाँ
यहाँ दिखती कार ही कार,
गाँव-सा यहाँ संस्कार कहाँ।

यहाँ है बस काम ही काम,
काम के बदले दाम ही दाम
अपनेपन का यहाँ नाम नहीं,
गाँव सा यहाँ सम्मान नहीं।

जीवन की आपा-धापी में,
मन व्यथित हो चला है
गाँव की मधुर स्मृतियों में,
अब मन मेरा लौट चला है।

दादी-नानी की कहानियाँ,
भाई-बहनों का वह प्यार
पडोसियों का वह साथ,
खेतों से होती प्यारी बात।

बिजली की तेज रोशनी से दूर,
दीपक के धीमे प्रकाश की ओर
पक्की भागती सडकों से दूर,
लौट चलें पगडंडियों की ओर।

नल और फिल्टर के जल को छोड़,
नदी तालाबों के साफ जल की ओर
आओ अब सब मिल लौट चलें,
लौट चलें, लौट चलें गाँव की ओर।

बहुत याद आता है गुल्ली-डंडा का खेल,
पिता का डाँटना और दादाजी का मेल
तालाबों में तैरना और मैदानों में दौड़ना,
पिता के क्रोध से माता द्वारा बचाना।

शहरों के ऊँचे-ऊँचे महलों से दूर,
गाँव के प्यार भरे परिवारों की ओर
आओ अब सब मिल लौट चलें,
लौट चलें, लौट चलें गाँव की ओर।

अपनी संस्कृति को बचाने के लिए,
चारों और अमन शांति फैलाने के लिए।
आओ अब सब मिल लौट चलें,
लौट चलें, लौट चलें गाँव की ओर॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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