सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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प्रथम प्रणाम मात कर जोरूँ,
जिसने दिया मुझे संसार
प्रथम गुरू मेरे जीवन की,
करती वंदन बारम्बार
माता मेरी जननी तुम ही,
तुम ही मेरी जन्म आधार
शीश नवा कर हाथ जोड़कर,
मैं करती हूँ प्रकट आभार।
प्रथम सखा और रक्षक मेरे,
जिसने दिया मुझे परिवार
छाया सिर पर सदा आपकी,
सदा मिले मुझे आपका प्यार
जनक हमारे जिनकी तुलना,
किसी से करना है बेकार
काँधे जिनके बैठ के घूमी,
चाहे घर हो या बाज़ार।
शिक्षा-दीक्षा देकर मुझको,
जिसने पक्का किया आधार
जाने बिना योग्यता मेरी,
जैसी थी मैं किया स्वीकार
गुरु सिखाते जीना कैसे,
कैसे करना है व्यवहार।
जीने की वे कला सिखाते,
प्रकट करूँ उनका आभार॥