संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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वह पथ जिस पर विचरण किया जा सके
नहीं नहीं वह बिल्कुल भी नहीं है,
वह शब्द जिस पर स्मरण किया जा सके
नहीं-नहीं, वह तो कतई नहीं है।
वह नाम जिसको वह दिया जा सके
वह तो बिल्कुल ही असम्भव है,
मूरत, सूरत, पोथी और पंथ कतई नहीं
मन रुपी है बस, जिसको लिया जा सके।
है आभास मात्र आभासी का
जिसको मन रुपी अंतर्मन में जिया जा सके,
धर्म ग्रंथ परिकल्पना लेखक की मात्र
है वही वो जिसको स्वयं रुप में जिया जा सके।
शब्दों से परे है, अर्थों से परे है
है वही अस्तित्व जो श्वाँसों में फले है,
है सुगंध, है व्योम वहीं तो
जिसको मात्र प्राणों में जिया जा सके।
ध्यान, वैराग्य, संन्यास और सत्संग
सब परिकल्पना मात्र ही तो है।
वह तो वहीं है जो वह नहीं है,
जिसको मात्र बस आभास किया जा सके॥