अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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महर्षि वाल्मीकि जयंती (१७ अक्टूबर) विशेष…
आदि कवि वाल्मीकि, मुनि महान,
जिनके शब्दों में राम का गुणगान।
तप-अग्नि में तपे जो निरंतर,
तभी कियाअमृत ‘रामायण’ से तर।
वनों में विचरण करते, रहे वे लीन ध्यान,
एक मूक शोक से पाया करुणा- स्नेह का ज्ञान।
क्रौंच पक्षियों के विलाप से हुए प्रेरित,
रच श्लोक की धारा, किया सबको मोहित।
राम, सीता, लक्ष्मण की कथा बुन डाली,
बात कही जीवन के मर्म को छूने वाली।
धर्म, करुणा, और आदर्श का गीत सुनाया,
वाल्मीकि ने एक युग को साहित्य से सजाया।
बने तपस्वी, हृदय में उठी करुणा अपार,
रच दी महागाथा, बनी वो सबका आधार।
वंदन करूँ आदि कवि, कवित्व की ज्योति,
महर्षि आप हो ‘शब्द ऋषि’ और ‘धरोहर’ कृति।
आज भी आपकी गाथा देती यह संदेश,
सत्य, धर्म, और प्रेम ही सजीव अवशेष।
वाल्मीकि, आदि कवि, युग-युगों के नायक,
आपकी कृति है जीवन की असली गायक॥