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विजय कहूँ!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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रावण दहन के इतिहास में,
मैं दानवता का अंत कहूँ
या पाखंड मुदित खल मानस,
कोटि रावण अब आभास करूँ।

परमारथ सुख शान्ति लोक में,
यश विजय दीप आलोक कहूँ
विजयपर्व यह सत्य न्याय का,
दशहरा या रामराज्य कहूँ।

कलियुग के इस विकट काल में,
किसको रावण या मनुज कहूँ
लोभ कपट मिथ्या इस जग में,
हिंसक दुष्कामी दनुज कहूँ।

महातिमिर फँस सत्ता मद में,
महिषासुर या सरकार कहूँ
जाति धर्म भाषा विभेद में,
विभाजक दंगाई गरल कहूँ।

महाज्वाल नफ़रत बन जग में,
बड़वानल या साजिश कहूँ
शुंभ निशुम्भ असुर घर-घर में,
कामी नृशंस खूंखार कहूँ।

लंकेश्वर था निपुण नीति में,
ज्ञानवान शत्रुंजय मानूँ
कामी था, पर नारी रक्षक,
इन्सान मनुज या दनुज कहूँ।

नीति प्रीति नित लीन कर्म में,
राजभक्त या रक्तबीज कहूँ
खाते रहते गाते दुश्मन,
गद्दार राष्ट्र या द्रोह कहूँ।

रावण था शत्रुंजय जग में,
साधक महान शिवभक्त कहूँ
देशभक्ति थी तन रग-रग में,
आजीवन पौरुष शक्ति कहूँ।

सत्कर्म धर्म इस कलि काल में,
अचरज विस्मय उपहास कहूँ
कह ईमान सुकर्म पथिक अब,
नैतिकता बस बकवास कहूँ।

झूठ फ़रेबी घूसखोरी में,
रत नेता जनता चोर कहूँ
बद्जुबान वे देशद्रोह में,
आतंक मीत या साथ कहूँ।

जननायक रावण लंका में,
प्रतिपालक या शौर्यवीर कहूँ
कुंभकरण अरु मेघनाद सम,
बलिदान वतन या असुर कहूँ।

आन-बान-सम्मान राष्ट्र में,
अभिमान भक्ति को नमन करूँ
जो पापी द्रोही कुल घातक,
उस राष्ट्र द्रोह का दमन करूँ।

जला रहे रावण वर्षों से,
खल पाप सिन्धु मन में मानूँ
पर घर-घर हिंसक कामातुर,
वतन द्रोह घातकी असुर कहूँ।

लूट रहे जन कोष राष्ट्र में,
लूटेरा या देशभक्त कहूँ
नेता सत्ता अधिकारी पद,
रावण महिषासुर कंस कहूँ।

धन सत्ता पद अहंकार में,
चौथ नयन या वाचाल कहूँ
विजय पर्व बन लोकतंत्र जय,
कल्पनातीत यथार्थ कहूँ।

विष अन्तर्मन आक्रोश हृदय,
क्या जन खुशियाँ मुस्कान कहूँ
आर्तनाद बन चहुँ दावानल,
उत्थान विजय या हार कहूँ।

नाश करो सब रावण मानस,
तज काम लोभ मद मनुज कहूँ।
जब नार्यशक्ति सम्मान राष्ट्र,
नव प्रगति शान्ति नव विजय कहूँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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