डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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शिकवा नहीं किसी से किसी से गिला नहीं,
न था नसीब में वो हमको मिला नहीं।
कर्मों का जिंदगी में कोई मोल ही नहीं।
बस कर्म करते जाइए, चाहें सिला नहीं।
कितना गुरूर उसको फकत आशियाँ पे था,
खंडहर-सा इक मकान था कोई किला नहीं।
मझधार में बिछड़ के कुछ ऐसा हुआ है हाल,
यादों की अंजुमन में कोई गुल खिला नहीं।
ये दर्द बेपनाह है ‘शाहीन’ है निढाल,
तन्हाई की रातों का कोई सिलसिला नहीं॥
