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श्याम विरह

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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जबसे नेह लगाया तुमसे श्याम सलोने साँवरिया।
इत-उत डोलूँ तुम्हें ढूँढती बनी तुम्हारी बावरिया॥

पल भर चैन पड़े ना तुम बिन अकुलाहट बढ़ती जाए,
नीर झरे आँखों से ऐसे ज्यों नदिया बहती जाए।
बनी जोगनी फिरूँ भटकती तुम्हें पुकारूँ श्याम पिया,
इत-उत डोलूँ तुम्हें ढूँढती बनी तुम्हारी बावरिया…॥

नयनों में ले सपन तुम्हारे,नाम रटूँ हरदम तेरा,
तेरे सिवा सारी दुनिया में कौन बता दे है मेरा।
मत तरसा अब दरश करा दे ओ मेरे साजन छलिया,
इत-उत डोलूँ तुम्हें ढूँढती बनी तुम्हारी बावरिया…॥

हरदम तेरी राह निहारूँ पलक बिछाये ओ कान्हा,
रमे हुए हो संग राधिका आज चलो मैने माना,
तरस रही हूँ आन दिखा दो अपनी प्यारी सूरतिया।
इत-उत डोलूँ तुम्हें ढूँढती बनी तुम्हारी बावरिया…॥

तन की हर पोरी-पोरी में बसी तुम्हारी ही मूरत,
मैं हूँ तुम्हारी तुम मेरे हो,नयनों में तेरी सूरत।
चरण कमल की दासी तुम्हरी हृदय लगा लो मन बसिया,
इत-उत डोलूँ तुम्हें ढूँढती बनी तुम्हारी बावरिया…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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