श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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चित्रकूट के घाट पर तुलसीदास बैठ गए मन मारे,
तुलसीदास का प्रेम देख के खुद ही श्री राम पधारे।
अनेकों संतों की भीड़ हो गई गंगा जी के घाट पर,
संत बोले श्रीराम का दर्शन लिखा था ललाट पर।
तुलसीदास के सौजन्य से राम का दर्शन पा हर्षाए,
कलम की ध्वनि बताए तुलसीदास फूले न समाए।
सामने प्रभु को देख तुलसीदास की मिटा मन की पीर,
तुलसीदास केशर चन्दन घिसें,तिलक करते रघुवीर।
मन ही मन में संतन कहते,क्या लागे राम तुलसी के,
हर्षित हो तुलसीदास कहें,श्रीराम आराध्य तुलसी के।
कहे कवि सुनो मित्र,शिष्य का आँसू गुरु देख ना पाए,
शिष्य की पुकार सुनते श्रीगुरु दौड़े खुद ही चले आए।
श्रीराम आराध्य हैं तुलसीदास के,कवि ये बताते हैं,
तुलसीदास श्रीराम को हृदय में,विराजने कहते हैं॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।