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सफ़र-ए-ज़िंदगी पर…

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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सोचता हूँ मैं ए ज़िंदगी,
तू कितना साथ देगी
इसलिए हर रोज निकलता हूँ मैं,
‘सफ़र-ए-ज़िंदगी’ पर…।

कभी दर्द कभी खुशी का वो कारवां,
कुछ खट्टा-कुछ मीठा-सा अनुभव
इससे आगे बढ़ता हूँ मैं,
‘सफ़र-ए-ज़िंदगी’ पर…।

मुश्किलों से डरना मेरा काम नहीं,
मैं हारा जरुर हूँ पर जीत की आशा नहीं छोड़ी मैंने
देखना है मुझे मालिक मंजिल अब मिलेगी,
इसलिए मैं निकल गया हूँ,
‘सफ़र-ए-ज़िंदगी’ पर…।

संघर्ष तो जीवन के अनुभव का सार है,
रुकना कभी भी नहीं चलना ही पड़ता है ज़िन्दगी में।
क्योंकि अविरल नदियों की धारा की यही पुकार है,
इसलिए मैं निकल रहा हूँ
‘सफ़र-ए-ज़िंदगी’ पर…॥