डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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सौ धागे इक साथ मिलें मोटी रस्सी बन जाए,
अलग-अलग जब स्वर मिलें, सुंदर गीत बन जाए।
सुख-दु:ख में लोगों के जब हाथ थाम कर चलते,
मन में संतोष पाले जब साझे दीप हैं जलते।
न धर्म जाति का बंधन हो न भाषा की हो सीमा,
आपस में सब साथ रहें और प्यार न होवे धीमा।
हर आँगन में सुख बरसे और देश में हो खुशहाली,
एकता की ज्योति जले हो प्यार की दिल में लाली।
पुष्प बहुत हों उपवन में, पर माला होती एक,
रंग-रूप चाहे जितने हों पर प्यार भारत एक।
अलग-अलग सुरों से ही तो मधुर राग बनता है,
साथ चलें ‘शाहीन’ सभी जन, तभी देश बनता है॥