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सावन में बिरह

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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बीत गया युग मिल जाओ तो हृदय कमल खिल जाये।
युग की प्यासी इन अँखियों को दरश तेरा मिल जाये॥

राह चुनी ऐसी मग चलते, शायद तुम मिल जाओ,
मन दर्पण पर धूल जमी है उज्ज्वल आन बनाओ।
देख सकूँ उसमें मुख तेरा मन बगिया खिल जाये,
युग की प्यासी इन अँखियों को दरश तेरा मिल जाये…॥

भटक रहा मन तुम बिन साजन बन के इक बंजारा,
टूटा तार हृदय का मेरे, बंद हुआ इकतारा।
आकर छेड़ो तार हृदय का सुर से सुर मिल जाये,
युग की प्यासी इन अँखियों को दरश तेरा मिल जाये…॥

सावन में अँधियारी रातें दिल को तड़पाती है,
तुम हो इसके दीप सजनिया, दीपक की बाती है।
तुम बन चन्द्र पूर्णिमा आओ, अँधियारा मिट जाये,
युग की प्यासी इन अँखियों को दरश तेरा मिल जाये…॥

नभ में घिरी घटाओं में तुम मुझे नज़र आते हो,
पर बारिश के संग न जाने छुप कैसे जाते हो।
हृदय लगा लो आकर के, तन-मन शीतल हो जाये,
युग की प्यासी इन अँखियों को दरश तेरा मिल जाये…॥

नयनों में बसते हो साजन, नींद कहाँ से आये,
अब अँसुओं ने किया बसेरा, निर्झर से झर जाये।
सब श्रृँगार पड़े हैं फीके, तुम बिन कौन सजाये,
युग की प्यासी इन अँखियों को दरश तेरा मिल जाये…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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