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सावन है आया

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रचनाशिल्प:१६-१२= २८ मात्रा कुल

नभ में घिरी घटाएँ काली अब सावन है आया।
रिमझिम बारिश की बूँदों ने तन-मन है हर्षाया॥

जब भी गिरे झमाझम पानी सरगम-सी बजती है,
माटी की सोंधी-सी खुशबू भी मन को हरती है।
पिहू-पिहू कर रहा पपीहा दादुर भी टर्राया,
रिमझिम बारिश…॥

देखा प्यारा इन्द्रधनुष तो प्रीत जिया में जागी,
साजन बसे बिदेस अकेली मैं रह गयी अभागी।
याद पिया की से आहत नैनों ने नीर बहाया,
रिमझिम बारिश…॥

झूले पड़े डार अमुआ की सखियाँ करें ठिठौली,
छेड़ करें सब नाम तुम्हारा ले ले कर हमजोली।
अब तो आ जाओ सावन में बहुत हमें तडपाया,
रिमझिम बारिश…॥

हरी चूड़ियों भरी कलाई सजना माँग सजाई,
बालों में गज़रा आँखों में काजल रेख लगाई।
रखड़ी,मेहँदी,पायल,बिंदिया सब श्रृंगार सजाया,
रिमझिम बारिश…॥

पपिहे की सुन पिहू-पिहू मन मिलने को करता है,
बादल की घन गरज सुनूँ तो मन मेरा डरता हे।
कोयल ने भी आज सजनवा गीत बिरह का गाया,
रिमझिम बारिश…॥

साजन ने आकर प्यासे नैनों की प्यास बुझाई,
बाँहों में भर के सीने से मुझको लिया लगाई।
अन्तर्मन खिल उठा ईश ने है ये दिन दिखलाया,
रिमझिम बारिश की बूँदों ने तन-मन है हर्षाया॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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