प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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सुख आए तो पचाना सीखिए,
दुःख आए तो निभाना सीखिए
सब कुछ सिखा दे॔ कृपालु भगवान,
बस उनको अपना बनाना सीखिए।
दुःख आए अपने से नीचे देखिए,
अभिमान आए अपने से श्रेष्ठ देखिए
जो भी भोग लो वो क्यों फीका लगे,
क्यों ना वैराग्य को अपनाना सीखिए।
कामना के चक्कर में नीचन के नीच बने,
तुम तो पूरण ब्रह्म थे फिर कैसे कीच बने
प्रभु पारस हम जड़-धातु टुकड़ा,
खुद को स्पर्श से चमकना सीखिए।
भोजन जो दूषित हो तन मुरझाए,
भावना जो दूषित हो मन मुरझाए
श्रवण, वाचन और दर्शन सुधारो,
इंद्रियों के वश में ना आना सीखिए।
मृग जैसे ना कस्तूरी पहचाने,
तुझमें है प्रभु-प्रीतम काहे ना माने
भूखे को भोज दो दीनों को धीरज,
समता के फूल खिलाना सीखिए।
जैसा संग साथ हो, वैसा मन बन जाए,
साधु संग प्रीत जीवन सत्संग बन जाए।
जो जितना शांत है उतना ही ऊँचा,
परहित में जीवन बिताना सीखिए॥