एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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उम्र चली गुजरने को है,
ख्वाब भी संवरने को है
रिश्तों को निभाने को है,
यादगार लम्हें जाने को है।
गुजरते दिनों का नाम है,
बस जिंदगी का पैगाम है
स्याह-सी धुंधली शाम है,
फिर आख़री मुकाम है।
रिश्तों में दूरियों की घुटन,
को कोई समझता नहीं है।
उम्रदराज लोगों के कोई,
करीब से ठहरता नहीं है॥