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सूरज दादा

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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ऐ सूरज दादा सूरज दादा,
खतरनाक इस बार इरादा।

उगल रहे हो कितनी आग,
लगता जल्दी घर को भाग।

धूप से ऐसी गर्मी बरसे,
मन ठंडा पीने को तरसे।

कहीं बिके बर्फ का गोला,
कहीं है लस्सी-कोकाकोला।

गन्ने का रस है ललचाता,
कुल्फ़ीवाला पास बुलाता।

कहीं शिकंजी नींबू पानी,
बिकता रंग-बिरंगा पानी।

आइसक्रीम के ठेलेवाले,
मुख पर सबके नजरें डाले।

गन्ने का रस बिके अनोखा,
गर्मी को जैसे देता धोखा।

फ्रिज का पानी घड़े सुराही,
छाँव पेड़ की ढूंढे राही।

सूरज दादा जरा बताएं,
इतने गुस्से में क्यूँ आए।

जंगल के सब पेड़ हैं टूटे,
इसीलिए ? तुम हमसे रूठे।

क्षमा करो हमको इस बार,
गलती हम करते स्वीकार।

एक पेड़ तो सभी लगाओ,
धरती माँ को चलो बचाओ॥

परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।