राधा गोयल
नई दिल्ली
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सृजन देव वर दीजिए, आऊँ किसी के काम,
जगह-जगह संग्राम छिड़ा, कैसे लगे लगाम ?
एक युद्ध अभी खत्म न होता, दूजा है छिड़ जाता,
वह भी खत्म न हो पाता, तीसरी जगह छिड़ जाता।
लाखों लोग युद्ध में मर गये, लाखों हो गए घायल,
माँगों का सिन्दूर मिट गया, चीख रही है पायल
मात-पिता की लाठी टूटी, बच्चे हुए अनाथ,
युद्ध बन्द करने का कोई उपाय बताओ नाथ।
कहीं भयंकर युद्ध छिड़ा है, कहीं है भारी बाढ़,
जो भी था सामान, बाढ़ में सारा हुआ कबाड़
पर्वत दरक रहे, ग्लेशियर पिघल रहे हैं सारे,
मलबे में कितने ही दब गए हैं किस्मत के मारे।
लाशों का अम्बार लगा है, फैल गई महामारी,
और कहीं सूखे ने मारा, फसल नष्ट हुई सारी।
कैसे ये विपदाएं दूर हों, बतलाओ भगवान,
शोषित वंचित लोगों को दे पाऊँ सुख धाम॥
सृजन देव वर दीजिए, आऊँ किसी के काम…