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स्वभाव बन गया स्वामी

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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🔹विशेष-रचना को २ भागों में बांटा गया है। प्रथम तब का है, जब सद्गुरु की प्राप्ति नहीं हुई थी। द्वितीय भाग गुरु महाराज के जीवन में आने के पश्चात का है। प्रस्तुत रचना गुरु महाराज के जीवन में आने से पूर्व का जीवन और उनके आने के पश्चात जीवन में हुए परिवर्तनों को दर्शाती है।
प्रथम भाग-
भोगों का भोग अब स्वभाव बन गया स्वामी,
मोह-माया रोग अब स्वभाव बन गया स्वामी।

घर की सुरक्षा के हित ताला लगाया नित-नित,
खुला मन को छोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी।

माया के वश भूल तुम्हें घिरी मैं अज्ञान, मोह,
तुमसे मुँह को मोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी।

माया तो दुकान अपनी रोज ही सजाती‌ है,
लूट के सिर को फोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी।

इतनी विषयवस्तु हासिल भोगने की, छोड़ने की,
नाम-जप को छोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी।

दुःखों को भोग-भोग भोगों में जलते-जलते,
यूँ जीवन को जीना स्वभाव बन गया स्वामी॥

द्वितीय भाग-
सतगुरु कृपा जो हुई नाम-जप से प्रेम बढ़ा,
नित्य तुम को पूजना स्वभाव बन गया स्वामी।

मोह-माया छोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी,
विषय-भोग छोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी।

आपके गले पड़ी भव तारना पड़ेगा प्रभु जी,
तुमसे खुद को जोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी।

आपसे करूंगी प्यार बाजी अपने हाथ राखूं,
तुमरे मन को जीतना स्वभाव बन गया स्वामी॥

संसार-दौड़ का हर योनि में अभ्यास किया,
प्रभु-मिलन को दौड़ना स्वभाव बन गया स्वामी।

निकृष्ट भोगों से अब मुझको बचा लेना शिव,
नाम शिव को रो रटना स्वभाव बन गया स्वामी।

मोह-माया छोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी,
विषय-भोग छोड़ना स्वभाव बन गया स्वामी॥