राधा गोयल
नई दिल्ली
******************************************
भारत विश्वगुरु और आत्मनिर्भर….
भारत जो कभी ‘विश्व गुरु’ कहलाता था…जिसकी सभ्यता और संस्कृति का सारी दुनिया लोहा मानती थी। हमारे वेदों ने वे आविष्कार हजारों वर्ष पहले कर लिए थे, जिन्हें आज विकसित देश अपने आविष्कारों का नाम देते हैं। रामायण काल में समुद्र पर पुल बना लिया था। बड़े-बड़े मारक प्रक्षेपास्त्र थे, लेकिन उनका इस्तेमाल शक्ति प्रदर्शन के लिए नहीं, अपितु शत्रु से मुकाबला करने के लिए किया जाता था। हमारे यहाँ एक लोक से दूसरे लोक तक एक ही दिन में पहुँच जाने वाले ॠषि-मुनि भी हुए। राम जी ने एक बाण से मारीच को लंका में फेंक दिया था। हनुमान जी एक ही रात में श्रीलंका से हिमालय पर्वत तक जाकर वहाँ से संजीवनी बूटी ले आए थे। चरक, सुश्रुत जैसे ज्ञानी वेदाचार्य हमारे देश में थे। नागार्जुन जैसा रसायन शास्त्री था, जिसने एक ऐसे रसायन का तरीका विकसित किया, जिससे मृत्यु से दूर रहा जा सके। वह स्वयं ६०० वर्ष तक जीवित रहा। यह बात अलग है कि उसने जीवन में राजनीति के इतने उत्थान-पतन देखे कि जीवन से अरुचि हो गई और वह सूत्र-उपाय भी नष्ट कर दिया।
बाहर के देशों के विद्यार्थी हमारे देश में पढ़ने आते थे। भारत के वैभव और ज्ञान को देखकर सभी की आँखें चौंधिया जाती थीं।हमारी सम्पदा को लूटने के लिए महमूद गजनवी ने १७ बार आक्रमण किया और अकूत सोना, हीरा, मोती, माणिक यहाँ से लूट कर ले गया। वो यह सब इसलिए कर पाया क्योंकि तब भारत खंड-खंड बँटा हुआ था, जिसके कारण हम २००० वर्षों तक कभी किसी के, तो कभी किसी के गुलाम रहे। १२ वीं शताब्दी में नालंदा के पुस्तकालय में अहमद शाह अब्दाली द्वारा आग लगा दी गई, जो ६ महीने तक जलती रही। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि उसमें कितनी पुस्तकें रखी होंगी।
पहले के गुरु शिक्षा बेचते नहीं थे। आश्रम में रहकर शिक्षा देते थे, जिसका अर्थ यह था कि आ.. और श्रम कर, लेकिन एक समय ऐसा आया…जब शिक्षा बिकने लगी।
अंग्रेजों के शासन काल में सारे गुरुकुल जला दिए गए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लंदन जाना एक मजबूरी बन गई। कभी सारी दुनिया में भारत का डंका बजता था, लेकिन अफसोस कि छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ हर राजा यही सोचता था कि मुझे केवल अपने राज्य की रक्षा करनी है। उसी का परिणाम था कि जब सिकंदर भारत पर आक्रमण करने आया तो उसने सीमावर्ती प्रदेशों को बड़ी आसानी से जीत लिया, किंतु फिर एक विश्व गुरु….एक राजनीति का शिक्षक ऐसा भी आया, जिसने देश की दशा और दिशा पलट दी। सारे भारत को एक सूत्र में पिरो दिया। बाद में अशोक ने कलिंग विजय के दौरान जब रक्तपात देखा तो उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया, अहिंसा का मार्ग अपना लिया।
हिंसा कोई अच्छी बात नहीं है, किन्तु हमेशा अहिंसा भी कभी-कभी हिंसा बन जाती है, जो बनी। अहिंसा का मार्ग अपनाने का नतीजा यह हुआ कि हमारी सामरिक शक्ति धीरे-धीरे क्षीण हो गई। हम विदेशी आक्रांताओं की गुलामी में जीते रहे।
आजादी मिलने के इतने वर्ष बाद भी हम लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुसरण कर रहे हैं, जिसने इस देश का बेड़ा ही गर्क कर दिया। जो केवल क्लर्क पैदा कर रही है।
यदि हम चाहते हैं कि भारत फिर से विश्व गुरु बने तो हमें शिक्षा पद्धति में बहुत सुधार करने की जरूरत है। हर जन तक शिक्षा पहुँचानी होगी। हर गाँव में विद्यालय खोलने होंगे।शिक्षा को रोजगार मूलक बनाना होगा। शिक्षा को आमजन की भाषा बनाना होगा। देश से प्रतिभा पलायन रोकना पड़ेगा। जब तक जन-जन तक शिक्षा नहीं पहुंचेगी, तब तक विकास की उम्मीद रखना बेमानी है और इसके लिए सभी को मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे। शिक्षा को सर्व सुलभ बनाना होगा। अंग्रेजी मोह छोड़ कर अपनी भाषा को अपनाना होगा।
आज विकसित देशों में जो अनुसंधान हो रहे हैं, उसमें ज्यादातर हमारे देश के नव युवकों का हाथ है। यदि अपने देश में ही उनको शोध करने के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाएंगे तो उन्हें बाहर जाने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी।
एक और बात, देश में जनसंख्या की विस्फोटक होती हुई स्थिति को रोकना पड़ेगा, क्योंकि जनसंख्या बहुत ज्यादा है और संसाधन कम हैं। उसके लिए एक समान जनसंख्या नियंत्रण कानून की महती आवश्यकता है। अब तक जो हो चुका…वो हो चुका, लेकिन आगे से जिसके दो से ज्यादा बच्चे हों, उसको सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाना चाहिए।
कृषि को प्रोत्साहित करना होगा ताकि हम अनाज के लिए आत्मनिर्भर हो सकें। केवल अनाज ही क्यों, सभी वस्तुओं का अपने ही देश में निर्माण होना चाहिए और देश के नागरिकों को इस बात के लिए जागरूक व प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे स्वदेश निर्मित वस्तुओं का उपयोग करें। यह तभी होगा, जब सरकारें भी…जितना अधिक उत्पादन हो… उतना कम कर वाली नीति अपनाएँ। इससे उत्पादन अधिक से अधिक होगा।
यदि हम भारत को विश्वगुरु और आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं, तो हमें कृष्ण नीति और चाणक्य नीति अपनानी पड़ेगी। तभी यह सब संभव होगा। उसके लिए केवल सरकार से या नेताओं से उम्मीद लगाने से कुछ नहीं होगा। मानवाधिकार संगठनों को अपने स्तर पर यह अभियान चलाना होगा। हालांकि, यह काम इतना आसान नहीं है, लेकिन जज्बा हो तो सब कुछ संभव है।
यह सीखना है तो श्रीकृष्ण से सीखो। आज की राजनीति में विदुर नीति, कृष्ण नीति, चाणक्य नीति की बहुत अधिक जरूरत है, क्योंकि आज भी महाभारत काल की तरह राजनेता अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं। योगेश्वर श्री कृष्ण की समस्त लीलाएं अन्याय और अत्याचार का नाश करने के लिए थीं। यदि हम भारत को विश्व गुरु बनाना चाहते हैं तो कृष्ण से हमें बहुत कुछ सीखना होगा। कृष्ण को दुनिया का प्रथम सत्याग्रही, प्रथम समाजवादी, प्रथम अवज्ञा आंदोलन कर्ता माना जा सकता है। माखन चोर कहें या मटकी फोड़, लेकिन उनका दर्शन स्पष्ट था कि मेहनत करने वाले का संसाधनों पर पहला हक है। उन्हें ‘मत बैंक’ की चिंता नहीं थी, वरना वे भी आज के राजनेताओं की तरह संसाधनों पर मेहनतकश लोगों के बजाय एक जमात का पहला हक बताते। यह उनका सत्याग्रह था अथवा अवज्ञा आंदोलन.. इसका फैसला कोई जैसे चाहे कर सकता है। उन्होंने अपने ग्वाल बाल सखाओं सहित उस क्षेत्र से बाहर जा रहे दही माखन की मटकी फोड़ कर कंस के अन्याय और भ्रष्टाचार का विरोध किया था। उन्होंने अपनी लीलाओं से ‘भागो मत, मुकाबला करो और स्वयं के भाग्य विधाता बनो’ का संदेश दिया था, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक एवं सार्थक है।
अन्याय-अव्यवस्था से त्रस्त लोगों को याद रखना होगा कि स्वयं को शक्तिशाली समझने वालों के दंभ को तोड़ने और नवयुग का निर्माण करने के लिए सभी को एकजुट होना होगा।
वैसे, तो जब कोरोना विषाणु का संकट छाया, तब सारा विश्व हमारी प्राचीन संस्कृति और हमारे जीवन मूल्यों का लोहा मान गया।यही सबसे उचित समय है कि, भारत में प्राचीन शिक्षा पद्धति व प्राचीन जीवन मूल्यों की स्थापना की जाए। अपना-अपना हित न सोच कर राष्ट्र के हित में सोचें। जिस दिन राष्ट्र का हित हर व्यक्ति का हित बन जाएगा, उस दिन भारत को विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। आज तो पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। कभी-कभी चुनौतियाँ अवसर बन कर आती हैं और अवसर किसी के लिए रुकता नहीं है, उसे तो लपकना पड़ता है। तो उठो, इस अवसर को अपनी मुट्ठी में भर लो। आज कई कम्पनियों का मोह दूसरे देशों से टूट रहा है। वे भारत में अपने उद्योग लगाने को उत्सुक हैं। यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है। इससे कई लोगों को रोजगार मिलेगा।