हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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जज्बात भरा दिल है, पर एक न पूरा हो।
हालात मिटा देते, हर ख़्वाब अधूरा हो।
लम्हे न कभी दिखते, महसूस हुआ करते,
कुछ वक्त मिटा देते, कुछ खूब हुआ करते।
है वक्त की उस्तादी, इंसान जमूरा हो,
हालात बिन समझे हर ख्वाब अधूरा हो।
जज्बात भरा दिल है…
तहरीर कठिन लगती, कोशिश न हुआ करती,
उस वक्त जतन हो तो खुद ही ये सजा करती।
बिन जत्न जमाने में हर चीज धतूरा हो,
पर लोग कहा करते हर ख्वाब अधूरा हो।
जज्बात भरा दिल है…
तकदीर सजाने की तदबीर बनी होती,
तदबीर न जानें तो तकदीर कहाॅं सजती।
दस्तूर निभाने हों, खाना न भटूरा हो,
हालात समझने में इंसान अधूरा हो।
जज्बात भरा दिल है…॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।