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हाय! गरमी प्रचंड

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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गरमी तेज़ प्रचंड हुई,
किल्लत पय चहुं हुई
पसीने से तर-बतर हो,
ज़िंदगी दुश्वार हुई।

लू बैरिन प्रचंड दहाड़,
गर्मी विकट सताए हुए
पसीना उभर-टपक रहा,
धरती हाय! तौबा हुए।

बड़ी मुश्किल आन पड़ी,
होती है गुल बिजली
चल रही पंखी अहरनिश,
ऋतु हठी तीक्ष्ण चली।

शीतल पेय सदा भाता,
रहती तकरार सदा
तृप्तिदायक हैं ये सभी,
त्राण-प्राण पुष्ट सदा।

ये गर्मी बड़ी अलबेली,
दुविधा हरदम रहती
धरती भी धुक-धुक जलती,
रश्मियाँ दव उगलती।

रूत निराले मिजाज देख,
ये झंझावात भिड़े
घनघोर बादल छाए,
ओले संग हिम गिरे।

झमाझम बारिश दामिनी,
उमड़-घुमड़ मेह बहे
तपती महि ठंडी-राहत,
रुख धराशाई हुए।

दोपहरी समय क्या कहें,
बेचैन हिय जोगिनी
सुबह-शाम शांति होती,
बह पुरवाई भीनी।

हे प्रभु चराचर अति व्यग्र,
आतप निहारे उग्र
दूर करो दुविधा भारी,
आलंब विलंब व्यग्र।

ज़हन में एक चिन्ता बोली,
अचल दिन भारी हुए।
हाल यहाँ गर ऐसा हो,
शहर क्यों रुसवा हुए॥

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।