सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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झिलमिल-झिलमिल अंतरिक्ष में
चमक रहे तारक-गण रे,
चाँद-चाँदनी चंचल किरणें
जागृत करती तन-मन रे।
एक चित्र आँखों में मेरी
चुपचाप उतर कर आता रे,
जैसे नभ के वक्षस्थल पर
चाँद कोई शरमाता रे।
सब कुछ खोकर भी अपना प्रिय
साथी नहीं बचा पाई रे,
जाने कैसे चुपके-चुपके
वेदना हृदय में उतर आई रे।
उस असीम के तार जुड़े हैं
करता चिंतन अंतर्मन रे।
मेरी श्वासें करतीं रहती
नित प्रभु का अभिनंदन रे॥