तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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जीवन पथ की
दुर्गम डगर पर,
चलना पथिक
सम्भल कर।
पग-पग पर
मिलती है ठोकरें,
पहुँचना चाहते हो
मंज़िल तक,
तो कभी हालातों से
डरना नहीं।
गिर भी जाओ तो
कोई बात नहीं,
पर गिरे ही मत रहना
उठ जाना और
सोचना क्यों गिरे ?
जीवन में
पग-पग पर,
देने पड़ते हैं इम्तहां
कभी सफ़ल तो,
कभी असफ़ल…।
कभी अपनी
सफ़लता का अंहकार,
न करना
और कभी अपनी,
असफ़लता से
निराश मत होना।
कारण ढूंढना आख़िर
असफ़ल क्यों हुए ?
कहाँ कमी रह गई ?
हमारे प्रयासों में,
जो हम असफ़ल हुए।
अपनी असफ़लता को
अपना गुरु मान कर,
हम बहुत कुछ
सीख सकते हैं।
चींटी चढ़ती है
गिरती है फिर,
चढ़ती है,
कभी नहीं थकती
फिर हम तो मनुष्य हैं।
कभी भी जीवन में
नकारात्मक विचारों को,
मत आने देना।
हर सफ़ल व्यक्ति के पीछे
उसकी सैकड़ों,
असफलताएं छिपी होती हैं।
कभी निराश होकर
अपने जीवन को,
बर्बाद नहीं करना।
अपनी हर
असफ़लता को,
सीढ़ी बना कर हमें
हमेशा ऊपर चढ़ना है॥
परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।