भुवनेश दशोत्तर
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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क्या बुरा है कि,
थोड़ा गलतफहमी में ही जिया जाए
दूर शहर में बेटा,
मनोयोग से पढ़ रहा है
संस्कारों में ही जी रहा है,
यही माना जाए।
सब रिश्ते भला ही चाहते हैं,
यही सोचा जाए
दुनिया में,
कहीं नहीं गरल है।
सब जैसे दिख रहे,
वैसे ही सरल हैं
कहीं नहीं मुखौटे हैं,
मन के नहीं खोटे हैं।
जैसा कहते हैं,
वैसे ही आचरण में जीते हैं
मान लिया जाए कि
इधर
सत्ता के गलियारों में
वादे पूरे किए जाएँगे।
उधर,
प्रेमी भी आकाश से सितारे
जमीं पर ले आएँगे,
प्यार के हर वचन
सच में निभाए जाएँगे।
आप कह सकते हैं,
ऐसी सब बातें
गलतफहमी है।
पर जीने के लिए
यही खुशफहमी है॥