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हे माँ सरस्वती

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

निश्छल होगा जब तेरा मन,
बस तभी सरस्वती आएंगी
हृदय की मरुभूमि पर माता,
शब्दों के मोती बरसाएंगी।

यदि माता की कृपा नहीं है,
एक शब्द नहीं लिख सकते
मन के कोरे कागज पर भी,
सुंदर भाव नहीं सज सकते।

कोई सृजन जब भी होता है,
समझो माँ का आशीर्वाद है
उनकी वीणा के तारों का,
पावन-सा मधुर आल्हाद है।

यदि माता की दया न होती,
तो नेत्रहीन क्या करते सृजन
सूरदास न ‘सूरसागर’ रचते,
न कभी लिख पाते भजन।

माँ के नैनों की ज्योति से ही,
हृदय की ज्योति खुलती है
तभी वाल्मीकि के मुख से,
पावन ‘रामायण’ निकलती है।

टूटा-फूटा जो भी लिखा है,
सब मात की ही तो इच्छा है।
हम तो याचक बनकर खड़े,
बस भावों की माँगे भिक्षा हैं॥

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।