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अब उबारो मुझको माँ

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

हे हंस वाहिनी ज्ञानदायिनी नमन तुझे माँ,
तेरे बालक तुझे पुकारे,कहां बैठी हो हो माँ।

हे मेरी माँ शारदे कहां तुम वीणा बजा रही हो,
वीणा की धुन पे अज्ञानियों को जगा रही हो।

मैं भी अज्ञानी,गिरा हूँ हे माता तेरे चरण में,
मुझ पर दया करो माँ,रखो अपनी शरण में।

हे माँ शारदे,माँ शारदे हे माता तुम मुझे तार दो,
अज्ञान की राह में अटक गया,माँ मुझे उबार दो।

हे माँ शारदे,हे माँ शारदे,हे माँ तुम मुझे तार दो,
अज्ञानियों का भार उतार दो,ज्ञान का भार दो।

अज्ञानी बनकर माँ मैं जिंदा रह नहीं सकता,
तुम्हारी दया बिन,गुण मिल भी नहीं सकता।

मैं भी तेरा बालक,माता मुझ पर बरसाओ ममता,
दुनिया की मतलबी रीत को मैं सह नहीं सकता।

बड़ी ही अद्भुत ये दुनिया की रीत है हे माता,
कैसे कहूं अपनी व्यथा को समझ नहीं आता।

सुना है तुम करुणामई,करुणा की देवी हो,
सबको समान ज्ञान देती,ज्ञानों की देवी हो।

अज्ञान के तिमिर ने,मुझे चारों तरफ से घेरा,
दोगी ज्ञान-विज्ञान यदि तो मिट जाएगा अंधेरा।

बेसहारा भटक रहा हूँ संभालो मुझको माँ,
विज्ञान-ज्ञान देकर,अब उबारो मुझको माँ।

ज्ञान-विज्ञान से बड़ा नहीं धन है कोई धरती पे,
निर्धन वही कहलाता है जो अज्ञान है धरती पे।

हे माँ शारदे,माँ शारदे विज्ञान का भंडार दे,
ज्ञान का भंडार दे,अपने तेज से निखार दे।

हे हंस वाहिनी ज्ञानदायिनी हे पुस्तक धारिणी,
हे श्वेत वस्त्र धारणी माँ सरस्वती वीणा धारिणी॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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